ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
: ५ :
गजराज ने अपनी स्थिति पर बहुत विचार किया और वह इस परिणाम पर पहुँचा कि उसको कस्तूरीलाल ही आश्रय दे सकता है। अतः एक दिन वह सन्तोषी के घर जाने के स्थान कस्तूरीलाल के घर चला गया। कस्तूरीलाल अपनी पत्नी के साथ खाना खा रहा था कि बैरा उसके पिता के आने की सूचना लाया।
कस्तूरीलाल ने बैरे को कहा, ‘‘उनको बैठाओ।’’
राजकरणी ने कह दिया, ‘‘क्यों? यहीं क्यों नहीं बुला लेते?’’
‘‘भोजन पर? वे खा आये होंगे।’’
‘‘पूछने में क्या हानि है?’’
‘‘क्यों, आज बहुत प्रेम उमड़ रहा है उनके प्रति?’’
‘‘प्रेम तो मैं जानती नहीं किन्तु आपने जो कम्पनी का समाचार बताया है, उससे उनके प्रति सहानुभूति तो हो ही गई है।’’
‘‘वे मुझसे सहायता माँगने के लिए आये हैं।’’
‘‘कैसे जानते हैं?’’
‘‘मुझे आज मंगल मिला था। उसने कहा था कि माताजी ने उसको तथा अन्य पाँच नौकरों को वेतन देकर छुट्टी कर दी है। उन्होंने कहा है कि अब उनकी सामर्थ्य नहीं रही कि वे इतने नौकर रख सकें।’’
‘‘ओह! तब तो आप उनको बुलाइये और जो कुछ आप उनकी सहायता कर सकते हैं, कीजिये।’’
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