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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


लक्ष्मी की रुचि इन दिनों घर के कामों में नहीं रही थी। इससे जब कस्तूरीलाल पृथक् हुआ तो न उसने रोष प्रकट किया, न ही प्रसन्नता। कस्तूरी गया तो वह उससे मिलने के लिए भी नहीं गई। राजकरणी तो पहले ही माता-पिता से पुत्र को पृथक् करने का विचार रखती थी।

पिता-पुत्र में कभी कम्पनी के कार्यालय में भेंट हो जाती थी, किन्तु उस समय पिता मद्य से अर्द्धचेतनावस्था में होता था। घर पर न तो पुत्र पिता से मिलने जाता और न पिता ही पुत्र से मिलने के लिए आता।

राजकरणी के पुत्र उत्पन्न हुआ तो उसका नामकरण-संस्कार किया गया। उस समय गजराज और लक्ष्मी आये थे, परन्तु दोनों निर्लिप्त-से बैठे रहे। इस संस्कार में कर्ताधर्ता मनसाराम और उसकी पत्नी तथा राजकरणी के भाई-बहन ही रहे। इस अवसर पर कस्तूरी स्वयं चरणदास के परिवार को निमन्त्रण देने के लिए उसके घर गया। तभी उसको पता चला कि सुमित्रा का विवाह हो गया है और उसका पति वहाँ रहता है तथा मामाजी उनसे पृथक् रहते हैं।

कस्तूरीलाल को केशवचन्द्र–सुमित्रा का पति–समझदार व्यक्ति प्रतीत हुआ। वह अपने विद्यार्थी-जीवन में फुटबाल का खिलाड़ी रहा था और उसकी बुद्धि निर्णयात्मक थी। सुमित्रा अब कस्तूरीलाल से झगड़ा करने का कोई कारण नहीं समझती थी। उसका विचार था कि केशवचन्द्र कस्तूरीलाल की अपेक्षा बहुत अच्छा आदमी है।

कस्तूरीलाल ने सुमित्रा से एकान्त में पूछा, ‘‘सुमित्रा! कैसे पटती है केशव जी के साथ?’’

सुमित्रा ने मुस्कराते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारी राजकरणी कैसी है?’’

‘‘उसी के लड़के के नामकरण पर तुम लोगों को निमन्त्रण देने के लिए आया हूँ।’’

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