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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


इस धुंधले चित्र में से स्पष्ट तो केवल आज की बात थी कि वह पंजाब बीमा कम्पनी का मैनेजिंग डायरेक्टर नहीं रहा था। उसके अपने हिस्से पैंतालीस प्रतिशत से कम होकर दस प्रतिशत रह गये थे। और जिन्होंने खरीदे थे, उन्होंने उसका समर्थन नहीं किया था।

वह घर आया तो मुंशी ने गजराज की सम्पत्ति तथा उस पर ऋण का ब्यौरा तैयार कर रखा था। चीनी मिल के हिस्सों का मूल्य दो लाख पचास हज़ार रुपये था। बीमा कम्पनी के हिस्सों का मूल्य अस्सी हज़ार रुपये, कोठी का मूल्य सवा लाख रुपये तथा कुछ हिस्से इण्डियन नेवीगेशन स्कीम के थे। इनकी खरीद की कीमत चार लाख थी, किन्तु अब इनका मूल्य कम हो गया था।

इस प्रकार पूर्ण सम्पत्ति लगभग सात-पौने सात लाख की थी और उसने बीमा कम्पनी से आठ लाख रुपया ऋण लिया हुआ था अर्थात् वह दिवालिया था। नकद रुपया कहीं नहीं था। हिस्सों के डिवोडेंड आकर समाप्त हो चुके थे। इमारतों के किराये बीमा कम्पनी को सूद में दिये जाते थे।

अतः दिन-प्रतिदिन व्यय के लिए पूर्ण असुविधा उत्पन्न हो गई थी। घर आकर मुन्शी से हिसाब-किताब देख वह अपने स्टडीरूम में चला गया। एक बात वह जानता था कि यदि बीमा कम्पनी वालों को सूद मिलता जाय और वे मूलधन माँगने का यत्न न करें तो उसके लिए अपनी स्थिति को सुधारने का अब भी अवसर मिल सकता है। इसके लिए बीमा कम्पनी के सेक्रेटरी के सहयोग की आवश्यकता थी।

कस्तूरीलाल आजकल पृथक् मकान में रहता था। उसने कनॉट प्लेस में एक मकान किराये पर ले लिया था और वहाँ जाकर रहने लगा था। कस्तूरीलाल की पत्नी राजकरणी ने अपने व्यवहार से कस्तूरीलाल पर ऐसा सम्मोहन डाला था कि उसको अपने माता-पिता के व्यवहार में भूल दिखाई देने लगी। फिर राजकरणी उसको अपने पिता से पृथक् होकर रहने के लिए प्रेरणा देने लगी। जब कस्तूरीलाल ने अपने पिता को बेतहाशा रुपया खर्च करते देखा तो अपनी पत्नी की बात मानने में ही लाभ समझ, वह पृथक् हो गया।

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