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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ३ :

कामोत्पन्न भ्रम अर्थात् अविवेक का गजराज के परिवार पर आधिपत्य हो गया था। गजराज ने शरीफन का बहिष्कार तो कर दिया, परन्तु वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए लक्ष्मी की संगति की इच्छा करने लगा। परन्तु जब लक्ष्मी ने उसका बहिष्कार किया तो वह अपना अधिक समय क्लब में बैठकर मद्य-सेवन में व्यतीत करने लगा। गजराज को नित्य मद्य में धुत हो रात के बारह बजे घर जाते देख एक ठेकेदार, जिसने नई दिल्ली में बहुत सम्पत्ति बना ली थी, इससे मित्रता करने लगा। बातों-ही-बातों में वह समझ गया कि इसको अपनी प्रेमिका ने निराश किया है। वह उस निराशा को भूलने के लिए पीता है। एक सायंकाल जब गजराज पैग-पर-पैर ले रहा था तो वह ठेकेदार अर्जुनसिंह उसके पास आकर बैठ गया और कहने लगा, ‘‘खन्ना साहब, बहुत सुन्दर थी क्या वह?’’

‘‘कौन?’’

‘‘वही जिसके वियोग में आप अपना सत्यानाश कर रहे हो।’’

‘‘ओह शरीफन! हाँ,, मैं उसको भूल नहीं सकता। इसी से इतनी पीता हूँ।’’

‘‘अपने अज्ञान का प्रमाण दे रहे हो। दुनिया में एक-से-एक बढ़िया औरतें मौजूद हैं, कुछ कोशिश करो तो मिल जाएँगी।’’

‘‘कैसे कोशिश करूँ? वह तो अनायास ही रेल के डिब्बे में मिल गई थी। वह शरीफ भी थी। परन्तु अपने घर के एक आदमी ने उसको ऐसा बरगलाया कि मेरे धन-दौलत और मान-प्रतिष्ठा को छोड़ उसके साथ जा बैठी।’’

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