लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘आपके पिताजी द्वारा दिए गए भोज में पेट-भर खाया है। आपकी माताजी वह दूध रख गई हैं। इच्छा हो तो पी लीजिए और पिला दीजिए।’’

‘‘नहीं, कुछ मैं भी तो अपनी रानी के लिए और अपने लिए रख गया हूँ।’’

‘‘तो लाइए, वह क्या नियामत है?’’

कस्तूरी पलंग से उठा और सामने की अलमारी का ताला खोल उसमें से एक बोतल, दो गिलास, दो सोडे की बोतलें और नमकीन की तश्तरी उठा लाया।

बोला, ‘‘आज तो यह चलेगा।’’

राजकरणी ने देखा कि वह ह्विस्की थी। दो बोतल सोडे की थीं। उसने कहा, ‘‘मैंने कभी पी नहीं।’’

‘‘मैं भी अभी नौसिखिया ही हूँ। मुझे इसकी आवश्यकता इस कारण हो रही है कि सोलह आने का रुपया मुझसे छीनकर मुझे चवन्नी दे दी गई है। इसलिए रुपये को भूलकर चवन्नी स्वीकार करने के लिए इस जादू के पानी की आवश्यकता पड़ी है।’’

‘‘आप पीजिए। मुझे तो चवन्नी की आशा में यह चाँदी का खरा रुपया मिला है। मुझे तो कुछ भी भूलने की आवश्यकता नहीं।’’

‘‘तो ठगे हुए को ही पिला दो। इतनी पिलाओं कि उसको चवन्नी भी रुपया ही दिखाई देने लगे।’’

‘‘पर मैं तो जानती नहीं किस तरह पी अथवा पिलाई जाती है।’’

कस्तूरी ने बोतल खोल डाली। एक पैग के लगभग गिलास में डालकर उस पर सोड़ावाटर डाल लिया। उसने सुरकी लगाकर पी और फिर राजकरणी को पीने का आग्रह करने लगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book