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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


अर्जुनसिंह मुस्कराया और कहने लगा, ‘‘आप एक दिन मेरे साथ आइये। मैं आपकी किसी के साथ जान-पहचान करा दूँगा। फिर इस विषय में कुछ दिन बाद बातचीत करेंगे। आप जैसा बाइज्ज़त और साहबे-दौलत आदमी ज़िन्दगी को इस तरह ज़ाया करता अच्छा नहीं मालूम होता।’’

‘‘तो कब?’’

‘‘चाहें तो आज ही चल सकते हैं।’’

‘‘तो चलो। अभी मुझे इतना होश है कि अच्छे-बुरे की पहचान कर सकूँ।’’

‘‘और अच्छा माल खरीदने के लिए जेब में दाम हैं अथवा नहीं?’’

‘‘अरे निश्चिन्त रहो अर्जुनसिंह! मेरी चैक-बुक जेब में ही है।’’

चिकनी ढालू जमीन पर खड़ा गजराज अर्जुनसिंह के किंचित् मात्र धक्के से ऐसा फिसला कि विनाश रूपी गढ़े में जा गिरा।

बाप-दादाओं की कमाई और अपने जीवन-भर का छल-कपट से पैदा किया धन बहने लगा तो फिर बहता ही गया। तीन वर्ष में ही तिजोरी का पेंदा दिखाई देने लगा।

अर्जुनसिंह ने गजराज का परिचय एक प्रौढावस्था की दलाल औरत सन्तोषी से करा दिया था और वह उसको उस बाज़ार की सैर कराने लगी, जहाँ प्रेम-प्रलाप और नाज-नखरे मूल्य पर बिकते थे। इन तीन वर्ष में उसका कइयों से वास्ता पड़ा और एक-से-एक बढ़िया वस्तु सामने आई। परन्तु यह आग भड़कती ही गई। गजराज की लालसा बढ़ती ही गई।

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