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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ६ :

ड्राइंग-रूम में सुमित्रा और मोहिनी को बैठे देख गजराज संकोच अनुभव करने लगा था। अपने संकोच को मिटाने के लिए वह बोल उठा, ‘‘रात क्लब में ही विलम्ब हो गया था इस कारण अभी तक सो रहा था। तुम लोग बैठो, मैं अभी स्नान करके आता हूँ।’’

लक्ष्मी उठकर अपने पति के साथ ही चली गई। मोहिनी ने अपनी लड़की से कहा, ‘‘तुमने यह बात बताकर ठीक नहीं किया। मुझे तो अपनी बात का भी खेद है। वह भी तुम्हारी सूचना के आधार पर आवेश में मेरे मुख से निकल गई थी। हो सकता है कि तुम्हारा कहना सत्य हो, परन्तु बात तो प्रमाण देने की है। तुमको इन बातों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।’’

‘‘माँ, कस्तूरी ने मेरा जीवन बरबाद कर दिया है। बचपन से ही वह मुझको पति-पत्नी की कहानियाँ सुना-सुनाकर उत्तेजित करता रहता था और अन्त में उसने मुझे विवश कर दिया कि मैं उसकी वासना-तृप्ति करूँ। उसने मुझे विवाह का वचन दिया था और ऐसा प्रतीत होता है कि मुझसे छुट्टी पाने के लिए उसने अपनी माँ को कुछ बताया है, जिससे वे मुझे उससे पृथक् रहने की शिक्षा देने लगीं। अब एकाएक उन्होंने निश्चय कर लिया है कि उसका विवाह कहीं अन्यत्र होगा।’’

‘‘इसका अभिप्राय तो यह हुआ कि जीजाजी और लक्ष्मी जानती हैं कि तुम्हारा कस्तूरी से संबंध रहा है?’’

‘‘कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है। अब मैं अपनी जानकारी से, जो मुझे कस्तूरी से ही मिली है, इनसे बदला लेना चाहती हूँ।’’

मोहिनी ने समझाते हुए कहा, ‘‘मैं चाहती हूँ कि तुम चुप रहो और जीजाजी से क्षमा माँग लो।’’

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