ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
मोहिनी कह तो गई थी, परन्तु कुछ निश्चित और प्रामाणिक बात वह जानती नहीं थी। इससे ननद के इस श्राप को सुन भय से काँप उठी, परन्तु सुमित्रा से नहीं रहा गया। उसने कहा, ‘‘बूआ जी, क्रोध करने से तो कुछ बनता नहीं है। मेरी राय मानो तो फूफा जी से पूछना कि ऐस्प्लेनेड रोड पर मकान नं. ३१५ में कौन रहता है और उसको कितने रुपये मासिक भेजते हैं और क्यों भेजते हैं?’’
‘‘क्या कहा? ऐस्प्लेनेड रोड मकान नं. ३१५? मैं स्वयं जाकर पता करूँगी। यह सत्य नहीं हो सकता, यह झूठ है।’’
‘‘बूआ! मैं तो आपकी बच्ची ही हूँ। यह बात कहने की आवश्यकता नहीं थी, परन्तु हम तो निरपराध हैं। इस पर रोष करने की आवश्यकता किस प्रकार हो गई?’’
लक्ष्मी गम्भीर विचार में बैठी रही। मोहिनी का मुख भय से पीला पड़ गया था। इस कलह का यह परिणाम वह ठीक नहीं समझती थी। सुमित्रा का विचार था कि उसकी सूचना ठीक है। उसके पास अभी इसके कुछ प्रमाण भी थे। वह मन में निश्चय कर चुकी थी कि आवश्यकता पड़ेगी तो उनको भी बताएगी।
लक्ष्मी अभी कुछ और प्रश्न सुमित्रा से करना चाहती थी, परन्तु इसी समय गजराज नाइट गाउन में अँगडाइयाँ लेकर आ गया। वह शौच जाने से पूर्व सिगरेट पी रहा था।
|