लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘मैं अभी चैम्बर में गया था और वहाँ हिस्सों के भाव-ताव देख रहा था। आशा है कि यदि वहाँ की बात समझ गया तो वर्ष में एकाध दिन काम करने से उतना ही कमा लूँगा, जितना यहाँ एक वर्ष में कमाता था।’’

मोहिनी को इससे सन्तोष हुआ था, परन्तु सुमित्रा को सट्टाबाज़ार के विषय में बहुत बुरा ज्ञान था। उसकी एक सहेली के पिता का सट्टेबाजी में ही दिवाला निकल गया था। उसने कह दिया, ‘‘पिताजी, वह तो जुएबाज़ी है?’’

‘‘नहीं सुमित्रा! वह भी एक साइंस है। जो उसको समझ जाते हैं, वे पलक की झपट में लाखों कमा जाते हैं।’’

सुमित्रा सिर हिलाकर चुप रही। इसका अभिप्राय यह था कि उसको पिता की बात पर विश्वास नहीं आया। वह जुए और साइंस में अन्तर समझती थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book