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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ५ :

लक्ष्मी ने अपने पति का सन्देश कि वे जानते हैं कि चरणदास कहाँ है और वह उसको घर भेज देंगे, मोहिनी को दिया। मोहिनी को इससे सन्तोष हुआ अथवा नहीं, फोन पर वह जान न सकी। वह स्वयं तो इस उत्तर से संतुष्ट नहीं थी।

जब गजराज क्लब से लौटा तो उसने पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ है?’’

‘‘चरणदास की बात पूछती हो?’’

‘‘हाँ।’’

‘‘तुमको बताया तो था कि उसने बहुत गड़बड़ की है। मामला डायरेक्टरों तक पहुँचा तो मैंने समझौता करा दिया। चरणदास ने स्वयं अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया है। उसके स्थान पर मैं कस्तूरीलाल को नियुक्त कराने का विचार कर रहा हूँ।

‘‘एक बात और है। एक डायरेक्टर तो बहुत ही नाराज़ था। उसकी नाराज़गी दूर करने के लिए मैंने उसकी लड़की से कस्तूरीलाल का संबंध स्वीकार कर लिया है। वह देगा भी बहुत-कुछ।’’

लक्ष्मी पहली सूचना से तो सर्वदा असन्तुष्ट थी। परन्तु कस्तूरीलाल के विवाह का प्रबन्ध सुन वह चुप हो गई। उसने बात बदल दी–‘‘परन्तु चरणदास गया कहाँ था? मोहिनी तो बहुत ही चिन्तित प्रतीत होती थी।’’

‘‘बात यह है कि रुपये के प्रभाव में चरणदास सर्वथा बिगड़ गया है। उसने एक रखैल रखी हुई है। कम्पनी का दस हज़ार रुपया उसी को अनुचित रूप से दिया है। अब वह दिन-रात वहीं घुसा रहता है। जब तुम्हारा फोन आया तो मेरा अनुमान था कि वह वहीं होगा। इस कारण मैंने सन्देश भेजने की बात कही थी।’’

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