उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘राम !’’ उसकी माँ ने कहा, ‘‘यह काम करने वालों के तरीके नहीं हैं। देखो, फकीर तो अल्पाहार इत्यादि कर खेतों में जाने के लिए तैयार खड़ा है। इधर तुम अभी आँखें ही मल रहे हो।’’
‘‘माँ ! रात मजदूरों से बातचीत करते-करते बारह बज गये थे। उसके पश्चात् घर आ खाना खाकर एक बजे ही सो पाया था। इतनी सवेरे कैसे उठ सकता था?’’
‘‘पर मजदूर तो काम पर जा पहुँचे होंगें?’’
‘‘नहीं माँ ! मैंने उनको कह दिया था कि आठ बजे नदी के तट पर मिलें।’’
‘‘तब तो ठीक है परन्तु यह नित्य के लिए तो नहीं हो सकता।’’
‘‘अभी तो आज के लिए ही कहा है, परन्तु मैं विचार करता हूँ कि नित्य आठ बजे ही काम आरम्भ हुआ करे तो क्या हानि है?’’
‘‘हानि तो बहुत है। काम उतना नहीं हो सकेगा, जितना होना चाहिए।’’ फकीरचन्द का कहना था।
‘‘क्यों नहीं होगा? मध्याह्न की छुट्टी कम कर दूँगा।’’
‘‘अच्छा, मैं चलता हूँ। तुय स्नानादि से निवृत्त होकर वहाँ आ जाना। मैं भी पहुँच जाऊँगा।’’ इतना कह फकीरचन्द काम पर चला गया। फकीरचन्द के चले जाने पर पन्नादेवी ने कहा, ‘‘राम ! इस प्रकार काम नहीं चलेगा। जैसे फकीरचन्द करता है, वैसे ही करना चाहिए।’’
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