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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘माँ, उसमें और मुझमें भारी अन्तर है। देखो, उसके लकड़हारे बीस रुपये मासिक वेतन पर रखे हुए है। वह अधिक वेतन इस कारण देता है कि उसे काम कराने का ढंग नहीं आता। यह बात कल चौधरी के सामने उसने मानी थी। मैंने लकड़हारे दस रुपये पर रखे हैं आधा वेतन जो दूँगा और यदि काम कुछ कम भी होगा तो भी घाटे में नहीं रहूँगा।’’

‘‘देख लो। काम होना चाहिए। काम नहीं होगा तो लाभ नहीं होगा और लाभ नहीं हुआ तो तुम्हारे पिता को, जिनसे झगड़ा कर मैं तुमको यहाँ लाई हूँ, कैसे मुख दिखाऊँगी।’’

रामचन्द्र शौचादि के लिए चला गया। उसकी माँ ने तो कभी भी खाना नहीं बनाया था। वह यहाँ पर खाना नहीं बना सकी। हाँ, राम की बहन ललिता रसोईघर में थोड़ा-बहुत काम कर रही थी। जब रामचन्द्र खाना खाने आया तो बिहारीलाल खाना खा रहा था और ललिता उसको खिला रही थी। रामचन्द्र को यह भला प्रतीत नहीं हुआ। वह समझता था कि वह फकीरचन्द से अधिक धनी की बेटी है और उसको इस प्रकार काम कर, अपने को छोटा नहीं बनना चाहिए। इसपर भी वह कुछ कह नहीं सका। वह चौके में आकर बैठा तो ललिता ने उसके सामने भी थाली रख दी और कटोरे में दाल डालने लगी।

बिहारीलाल को वह रोटी लगी तो उसने कह दिया, ‘‘ललिता बहन ! भैया को पहले दो। इनको पहिले ही बहुत देरी हो गई है।’’

ललिता ने रोटी बिहारीलाल की थाली में डालते-डालते रामचन्द्र की थाली में रख दी। इसपर भी रामचन्द के खेतों में जाने से पहले बिहारीलाल स्कूल चला गया था। रामचन्द्र ने जाने से पूर्व माँ से कहा, ‘‘माँ ! तुमने ललिता को इनके घर में नौकर बना दिया है।’’

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