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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘नौकर? यह उसके रसोईघर में काम करने के कारण कहते हो?’

‘‘हाँ।’’

‘‘तो फकीर की माँ को क्या समझते हो? क्या वह हमारी नौकरानी है?’’

रामचन्द्र निरुत्तर हो गया और बिना एक भी शब्द कहे घर से निकल नदी-तट पर जा पहुँचा, जहाँ उसने अपने मजदूरों को आने को कहा हुआ था। मजदूरों को आठ बजे का समय दिया गया था, परन्तु रामचन्द्र नौ बजे पहुँच सका। उसने दस लकड़हारों को नौकर रखा था। उन दस में से तीन खड़े थे। उन खड़े मजदूरों ने बताया कि वे आठ बजे के वहाँ आये हुए हैं।

‘‘और कोई नहीं आया क्या?’’

‘‘एक और आया था और आधा घण्टा प्रतीक्षा कर चला गया है। कहता था कि थोड़ी देर में आयेगा।’’

‘‘फकीरचन्द बाबू आया था क्या?’’

‘‘जी हाँ। वे आपको न देख नदी पार चले गये हैं। चौधरी उनके साथ गया है।’’

‘‘तो चलो, तुम भी चलो।’’

ये चारों किनारों पर बँधी नौका पर सवार हो पार चले गए। नाविक उनको किनारे पर उतार, नौका एक ओर बाँध, उनके साथ-साथ चल पड़ा। रामचन्द्र ने उसकी ओर घूरकर देखा तो उसने कह दिया, ‘‘फकीरचन्द बाबू ने बुलाया था। वे कह गये थे कि जब तुमको इधर लाऊँ, तो उससे मिल लूँ। मैं समझता हूँ कि वे वापस जाना चाहते होगें।’’

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