लोगों की राय

उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

270 पाठक हैं

बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


फकीरचन्द चौधरी के साथ एक ऊँचे स्थान पर खड़ा देख रहा था कि कहाँ से कटाई आरम्भ की जाए। इस समय रामचन्द आ गया। साथ आये मजदूरों को फकीरचन्द ने बताना आरम्भ कर दिया कि उनको कहाँ से कटाई आरम्भ करनी चाहिए। उसने कहा, ‘‘वर्षा ऋतु में नदी यहाँ तक आ जाती है। यहाँ से सौ गज और छोड़ दी जाए। अतः उस स्थान से कटाई आरम्भ कर देनी चाहिए। आगे वह भूमि समतल है। उसको ही पहले साफ करना चाहिए। उसमें जंगल भी कम है। मेरा विचार है कि लकड़ी को नदी पार ले जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी जखलौन स्टेशन पर से माल बाहर भेजा जा सकता है। स्टेशन से चाहो तो ललितपुर और झाँसी भेज सकोगे और चाहो तो बीना भी भेज सकोगे।

‘‘वह देखो, वह कुछ ऊँचा स्थान है। मैं चाहता हूँ कि वहाँ अपने मकान के लिए स्थान साफ करा लो।’’

रामचन्द्र अपने चारों ओर देख रहा था। एकाएक उसने पेड़ों के एक झुरमुट की ओर उँगली कर पूछा, ‘‘कटाई वहाँ से आरम्भ क्यों न की जाए?’’

‘‘वह स्थान आपके किता में नहीं है।’’

‘‘हमें कोशिश करनी चाहिए कि वह स्थान हमको मिल जाए।

मैं समझता हूँ कि सेठजी ने भूमि को देखे बिना ही पट्टा करा लिया है।’’

‘‘उन्होंने देखा तो था। वह भूमि उनको मिल नहीं सकती थीं।’’

‘‘क्यों?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book