उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
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परन्तु रामचन्द्र की माँ के कहे अनुसार काम हो नहीं सका। अगले दिन के लिए फकीरचन्द ने शेषराम को अपने खेतों में करने योग्य काम बताकर कहा, ‘‘मैं कुछ देर से आऊँगा। तुम देखना कि काम भली-भाँति आरम्भ हो जाए।’’
उसे रामचन्द्र के साथ उसके खेतों पर काम आरम्भ कराने के लिए जाना था। अल्पाहार लेकर वह रामचन्द्र की प्रतीक्षा करने लगा। जब वह नहीं आया तो उसके कमरे के बाहर जाकर फकीरचन्द ने दरवाजा खटखटाया। रामचन्द्र की माँ फकीरचन्द की माँ के कमरे में सोई हुई थी। अपने पुत्र के कमरे के दरवाजे की खटाक सुन वह बाहर आ गई। अभी सूर्य नहीं निकला था। उषा-काल का प्रकाश-मात्र ही था। इस कारण पन्नादेवी ने पूछा, ‘‘फकीरचन्द ! क्या बात है?’’
‘‘माँजी ! मैं राम को काम पर साथ ले चलने के लिए बुला रहा हूँ।’’
‘‘पर अभी तो बहुत सवेरा है।’’
‘‘नहीं माँजी ! देर हो गई है। मैं तो स्नान-ध्यान से निवृत्त हो चुका हूँ। राम के लिए भी अल्पाहार तैयार रखा है और मैं खा चुका हूँ।’’
‘‘तो क्या नित्य तुम इस समय काम पर चले जाते हो?’’
‘‘हाँ माँजी ! मेरे आदमी काम पर चले गए हैं। हम खेतों में ही होते हैं, जब सूर्य भगवान् क्षितिज पर दिखाई देते हैं।’’
रामचन्द्र की माँ अपने लड़के के अभी तक सोये रहने पर बहुत लज्जित हुई और वह उसको जगाने के लिए स्वयं दरवाजा खटखटाने लगी। बहुत कठिनाई से रामचन्द्र उठा और आँखें मलता हुआ कमरे से बाहर निकल आया।
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