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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


फकीरचन्द को यह कथा सुन प्रसन्नता नहीं हुई। वह अपने मन में विचार कर रहा था कि रामचन्द्र परिश्रम कर नहीं सकेगा। उस को इस काम से कुछ लाभ होगा नहीं। इससे उसकी माँ को निराशा होगी। उसकी आशाएँ अपने पुत्र से अपूर्ण रह जाएँगी।

इसपर भी वह इसको अपना अनुमान मात्र समझ, किसी प्रकार की भविष्यवाणी करना नहीं चाहता था। साथ ही वह समझता था कि यदि उसके थोड़े से सहयोग से किसी का भला हो सकता है, तो उसको सहायता देने में संकोच नहीं करना चाहिए।

यह विचारकर उसने कहा, ‘‘माँजी ! मैंने आपको वचन दिया है कि मैं उसकी यथासम्भव सहायता करूँगा। इसपर भी यह आपको समझ ही लेना चाहिए कि बहुत-कुछ उसके अपने प्रयास पर निर्भर है। यदि राम ने स्वयं परिश्रम नहीं किया तो सफलता बहुत कठिन हो जाएगी।’’

‘‘तुमको यहाँ की भूमि और कर्मचारियों का ज्ञान है और तुम एक सफल कृषक हो। मैं उसको कहूँगी और वह तुम्हारे कहने के अनुसार करेगा। वह तुम्हारे छोटे भाई की भाँति यहाँ रहेगा।’’

‘‘माँजी, वैसे तो मैं उसका छोटा भाई हूँ। मेरी आयु अभी सत्रह वर्ष की हुई है।’’

‘‘सच? तुम देखने में तो बड़े प्रतीत होते हो। वह अगले मास उन्नीसवाँ वर्ष समाप्त कर बीसवें में प्रवेश करेगा। कुछ भी हो, तुम ज्ञान और अनुभव में उससे बड़े हो।’’

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