उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
रात को खाने के समय पन्नादेवी ने फिर फकीरचन्द से रामचन्द्र की देखभाल के लिए कहा। फकीरचन्द ने कह दिया, ‘‘माँ जी ! यह काम अति कठिन है। इसपर भी मैं समझता हूँ कि यदि मन में दृढ़ संकल्प हो तो इस संसार में कोई भी काम नहीं, जो न किया जा सके। अभ्यास से सब-कुछ हो सकता है। कभी मनुष्य गलती भी कर सकता है। गलती को मानकर उसको सुधारना ही सफलता का लक्षण है।’’
इसपर पन्नादेवी ने अपने मन की बात कह दी। उसने कहा, ‘‘मेरी सबसे बड़ी सन्तान तो यह लड़का है। अब उन्नीस वर्ष का हो रहा है। सेठ जी की पहली पत्नी से एक लड़की है। उसका विवाह हुए चार वर्ष हो चुके हैं। अब उसकी दो सन्तान हैं–एक लड़का है और दूसरी लड़की। सेठ जी की रुचि लड़की के बच्चों की ओर देख, मैंने अपने लिए कुछ स्वतन्त्र आश्रय बनाने का विचार किया है।
‘‘सेठजी ने इन खेतों के विषय में विज्ञापन पढ़ा तो अपने मुन्शी को पता करने के लिए यहाँ भेजा था। मुन्शी का विचार था कि इन खेतों में लाभ नही हो सकता। इसपर सेठजी ने इन खेतों का विचार छोड़ दिया। लगभग तीन महीने हुए वे स्वयं यहाँ आये थे और तुमको सफलतापूर्वक काम करते हुए देख, यहाँ पर पाँच सौ एकड़ भूमि पट्टे पर ले गये। इस भूमि को अपने विचार पूरे करने का साधन मान, रामचन्द्र को लेकर मैं यहाँ चली आई हूँ।
‘‘मैं कहती हूँ कि मैंने सेठजी से हठ करके खेत रामचन्द्र के लिए ले दिए हैं। इस कारण उसको इसमें अवश्य सफल होना चाहिए। मेरी इच्छा है कि कुछ काल तक मैं यहाँ उसके पास रहूँ। जिस समय मैं देखूँगी कि इसका काम चलने लगा है, मैं वापस बम्बई चली जाऊँगी और इसी प्रकार अपने अन्य बच्चों का प्रबन्ध करने का यत्न करूँगी।’’
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