उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘मैं तो इससे बात भी न करता, परन्तु यह सुन कि आपने भेजा है, मैं इसको समझा रहा था कि चार रुपये वाले मजदूर काम नहीं करेंगे। वे प्रायः हाजिरी लगवा अपने खेतों में काम करने चले जाया करेंगें।’’
फकीरचन्द ने पूरी बात समझकर कहा, ‘‘चौधरी ! एक बात तुम नहीं समझते। किसी मजदूर ने चार रुपये महीने पर काम करना स्वीकार किया है, तो गलती मजदूर की है न कि मालिक की। मालिक, यदि मुँह माँगा वेतन देकर मजदूर से काम नहीं कराता, तो दोष मजदूर का नहीं, प्रत्युत मालिक का है। इस कारण जो चार रुपये पर काम करने वाले हैं, उनको काम करने दो। यह मालिक की चुतराई है कि वह उनसे कितना काम लेता है।’’
चौधरी हँस पड़ा। रामचन्द्र उसकी हँसी का अर्थ नहीं समझ सका और उसका मुख देखने लगा। रामचन्द्र को अपनी बात पर विस्मय करते हुए देख, चौधरी ने फकीरचन्द से पूछा, ‘‘बाबू ! तुम चार रुपये मासिक पर मजदूर क्यों नहीं रखते?’’
‘‘चौधरी ! इसलिए कि मैं चतुर मालिक नहीं हूँ। मैं अपनी अयोग्यता की पूर्ति करने के लिए वेतन अधिक देता हूँ।’’
चौधरी समझ गया कि फकीरचन्द अपने मेहमान की हँसी उड़ा रहा है। इसपर भी रामचन्द्र इस व्यंग्य का अर्थ न समझ पूछने लगा, ‘‘तो भैया ! मैं उनको नौकर रख लूँ?’’
‘‘यही तो मैं कह रहा हूँ। अभी चले जाओ। चौधरी के सामने उनसे बातचीत कर लो और उनको कल काम पर बुला लो। सबसे पहले तो लकड़हारे चाहियें। जंगल कटवाना है।’’
‘‘आइये चौधरी साहब !’’ रामचन्द्र ने प्रसन्न हो कहा, ‘‘हमें अभी चलना चाहिए।’’
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