उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
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फकीरचन्द मकान की इमारत समाप्त कर और फर्नीचर लगवा, वहाँ रहने आ गया था। मकान के पिछवाड़े के आँगन में उसने एक कुआँ बनवा लिया और कुएँ के दोनों ओर बगिया लगवा ली थी। एक ओर तो घर के प्रयोग के लिए सब्जी-भाजी लगवाई थी और दूसरी ओर फूलों का उद्यान था।
एक दिन सेठ करोड़ीमल का लड़का रामचन्द्र, उसकी माँ और बहिन वहाँ आ पहुँचे। फकीरचन्द कटी फसल को खलिहानों में एकत्रित करवा रहा था। एक ओर गेहूँ जमा किया जा रहा था और दूसरी ओर भूसा। फकीरचन्द इनका निरीक्षण कर रहा था कि एक बैल-ताँगे में सवार अतिथि आ गये। उनको ताँगे में से उतरते देख फकीरचन्द उनका स्वागत कर उनको घर माँ के पास ले गया। माँ को उनके खाने-पीने का प्रबन्ध करने को कह स्वयं काम पर चला गया।
मध्याह्न तक काम की देखभाल कर फकीरचन्द घर आया तो रामचन्द्र, उसकी माँ था बहिन स्नानादि कर,भोजन कर चुके थे। फकीरचन्द ने भी स्नान किया और भोजन करने चौके में जा बैठा। उस समय रामचन्द्र और उसकी माँ वहाँ आ बैठे।
रामचन्द्र की माँ का नाम पन्नादेवी था और उसकी बहिन का ललिता। इस समय ललिता तो अपने कमरे में आराम कर रही थी। पन्नादेवी ने फकीरचन्द को सम्बोधन कर कहा, ‘‘बेटा देखो ! यह तुम्हारा छोटा भाई है। इसका काम चालू करवा दो। भगवान् तुम्हारा भला करेगा।’’
‘‘माँ जी ! आप मेरी ओर से निश्चिन्त रहें। जो कुछ मेरे बस में होगा, वह मैं कह दूँगा। शेष तो इसके करने की बातें हैं, जो यह स्वयं ही कर सकेगा। मैं कल इसके साथ इसकी भूमि देखने चलूँगा और कहाँ से काम आरम्भ करना चाहिए तथा क्या काम होना चाहिए, बता दूँगा। मजदूर भी मिल जाएँगे। मजदूरों से काम लेना तो इसका ही काम होगा। इसके लिए इसको तैयार रहना चाहिए।’’
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