उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘अभी मैं इस लड़के के चरित्र के विषय में जाँच करने वहाँ गया था। वहाँ मैंने उसके खेत और काम का भी निरीक्षण किया था। उसने काम को ऐसे ढँग से चलाया है कि भूमि धन उगलती प्रतीत होती है।’’
करोड़ीमल फकीरचन्द की प्रशंसा सुन देवगढ़ जा पहुँचा। वहाँ वह फकीरचन्द को खेत में काम करते देख पहचान गया कि यह वही लड़का है जो उसको रेल के डिब्बे में लाहौर के स्टेशन पर मिला था।
फकीरचन्द भूमि में बीज डलवा रहा था। शेषराम बीज डालने की मशीन पर बैठा बीज डालता हुआ मशीन को खेत में घुसा रहा था और फकीरचन्द देख रहा था कि काम ठीक हो रहा है अथवा नहीं। इस समय करोड़ीमल अपने नौकर के साथ उसके समीप आकर खड़ा हो गया। फकीरचन्द ने सेठ को देखा तो पहचान गया। उसने हाथ जोड़कर नमस्कार की और पूछने लगा ‘‘आपने पहिचाना है मुझको?’’
‘‘हाँ, मैं तुम्हारे बलपूर्वक डिब्बे में चढ़ जाने को भूल नहीं सकता। कदाचित् तुमको स्मरण होगा कि मैंने कहा था कि अधिकारी को मैं अधिकार देता हूँ। तुमने जब भीतर घुस आने का साहस किया तो मैं जान गया कि तुम भीतर बैठने के अधिकारी हो। मैंने स्थान दे दिया। संसार में वे ही सुख और धन प्राप्त कर सकते हैं, जो अपने लिए स्थान बनाने का साहस रखते हैं और उसके लिए प्रयत्न करते हैं।’’
यद्यपि यह सिद्धान्त पूर्णरूप में ठीक तो नहीं कहा जा सकता था, इसपर भी जितना वह था, ठीक ही था। फकीरचन्द मन में विचार कर रहा था कि इतना बड़ा काम केवल छः सौ रुपये की पूँजी से करने के लिए साहस और पुरुषार्थ ही चाहिए थे। यदि वह साहस न करता तो अभी तक भारत बीमा कम्पनी में पैंतीस रुपये महीने का कलर्क ही होता।
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