उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
मोतीराम को नित्य पुलिस के पास हाजिर होना पड़ता था। इससे मोतीराम न तो झाँसी छोड़ सका और न ही वह किसी काम में लग सका। राजा साहब ने उसको इस कठोर यन्त्रणा से छुटकारा दिलवाने के लिए उसे अपने पास ही नौकर रख लिया। नौकर हो जाने से उसका नाम रजिस्टर से निकलवाने में आसानी हो गई। मोतीराम राजा साहब के मैनेजर के कार्यालय में चपरासी के काम पर नियुक्त हो गया। मैनेजर ने कहा भी कि यह आदमी सहायता का अधिकारी नहीं, परन्तु राजा साहब का मत था कि संसार में प्रत्येक व्यक्ति को अपना सुधार तथा उन्नति करने का अवसर मिलना चाहिए।
करोड़ीमल ने जब फकीरचन्द से रेल में, लाहौर से दिल्ली आते समय राजा साहब की भूमि के विषय में सुना था, तो एक किता भूमि लेने के विचार से, अपने मुंशी को पता करने झाँसी भेजा था। मुशी यहाँ आया था और उसने भूमि को देख और पट्टे की शर्तों के विषय में जाँच कर सेठ साहब को बताया कि इस काम में लाभ की कुछ भी सम्भावना नहीं। मुंशी ने फकीरचन्द के प्रयास को भी देखा था। उस समय तक खेत तैयार नहीं हुए थे और उसका विचार था कि फकीरचन्द का दिवाला निकलेगा।
जब रुपये के लिए करोड़ीमल को झाँसी से रहना पड़ा और वहाँ मैनेजर से फकीरचन्द की भूरि-भूरि प्रशंसा सुनी तो उसके मन में पुनः फार्म खोलने का विचार उठने लगा। उसने मैनेजर से इस विषय में राय की। सेठ की बात सुन मैनेजर ने बताया, ‘‘मैं भी समझता था कि फकीरचन्द इस काम को एक कर नहीं सकेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि यह लड़का बहुत अच्छा प्रबन्धक है। जंगल की कटाई और लकड़ी को मार्केट में ले जाकर बेचना अति कठिन कार्य था, परन्तु इसने यह सब कुछ ऐसे ढँग से किया है कि जंगल में मंगल कर दिया है। मैंने उसको इस काम में हाथ डालने से मना किया था, परन्तु वह हठ करता रहा और मैं अब समझता हूँ कि वह स्वयं को भली-भाँति समझता था।
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