उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
द्वितीय परिच्छेद
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रुपया प्राप्त करने के लिए करोड़ीमल को झाँसी में दस-बारह दिन ठहरना पड़ा। इस सब काल में वह राजा साहब का मेहमान रहा।
राजा महेन्द्रपालसिंह अति सज्जन व्यक्ति थे। इसपर भी राजा के पुत्र होने से और सदा चापलूसों से घिरा रहने के कारण उनकी बुद्धि कुछ मोटी थी। साथ ही लाखों की जमींदारी का स्वामी होने के कारण उनकी सज्जनता पर अभिमान और आडम्बर की एक हल्की-सी परत चढ़ गई थी।
महेन्द्रपाल की माता, जो एक साधारण-से आदमी की लड़की थी, अपने भगवत-भजन तथा कठोर जीवन के कारण लड़के के अभिमान इत्यादि की परत को पतला करती रहती थी। जो कुछ भी उलटा प्रभाव खुशामदियों की चाटुकारी से उत्पन्न होता था, माता अपने सदोपदेश से कम करने का यत्न करती रहती थी। इसका परिणाम यह हो रहा था कि राजा साहब कम अनुभवी होते हुए भी, अपने को ज्ञानवान् समझते थे। साथ ही अपनी भूल का ज्ञान हो जाने पर तुरन्त उसे सुधार लेते थे। जहाँ नेकी को सदा प्रचलन देने की चिन्ता में रहते थे, वहाँ कभी किसी दुष्ट आदमी को भी कष्ट में देख पिघल जाते थे और उसकी सहायता के लिए तत्पर हो जाते थे।
मोतीराम ने जब फकीरचन्द की निन्दा की तो राजा साहब उसकी निन्दा पर विश्वास कर क्रोध से भर गये। तदनन्तर जब मैनेजर ने मोतीराम के आरोपों की जाँच की, और जाँच करने पर मोतीराम की दुष्टता का ज्ञान हुआ तो मोतीराम को फँसाने के लिए यत्नशील हो गये। साथ ही करोड़ीमल की सहायता करने लगे। करोड़ीमल को रुपया मिल गया तो सन्तोष अनुभव कर मोतीराम का नाम दस नम्बर के रजिस्टर में लिखा जाता देख उसपर दया का भाव अनुभव करने लगे।
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