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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘उस अवस्था में हम तुमको नदी पार की भूमि का पट्टा दे देंगे और उसमें इतनी रिआसत देंगे कि तुम्हारा पाँच हजार रुपया वसूल हो जायगा।’’

‘‘क्या रिआयत दी जाएगी महाराज?’’

‘‘हम लकड़ी पर एक आना मन का नजराना तुमसे नहीं लेंगे।’’

इससे मोतीराम बहुत प्रसन्न हुआ। वह समझता था कि उसके पाँच हजार रुपये से, उसको लकड़ी पर नजराने के बिना भूमि तो मिल ही जायगी और यदि फकीरचन्द निकल सकेगा तो नदी के इस पार की भूमि पा जायगा। इसपर वह रुपया महाराज के खजान्ची के पास जमा कराने के लिए तैयार हो गया। दो दिन के भीतर ही उसने रुपया देवगढ़ से लाकर जमा करा दिया और मैनेजर साहब से वचन-पत्र माँगने लगा।

रुपया जमा होते ही करोड़ीमल को तार देकर झाँसी बुला लिया गया। उसको लिखा गया कि उसका चोरी का पाँच हजार रुपया मिल गया है। करोड़ीमल झाँसी आया और मोतीराम को राजा साहब के पास बैठा देख चकित रह गया। सेठ ने पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी और मोतीराम को पकड़वा दिया।

पुलिस ने मोतीराम को पकड़ लिया और राजा साहब के खजाने से मोतीराम का पाँच हजार रुपया अपने अधिकार में ले लिया।

मोतीराम के विरुद्ध क्या मुकद्दमा चलाया जाय, पुलिस समझ नहीं सकी। चोरी के अपराध के लिए तो तीन वर्ष दण्ड वह भोग चुका था। इसके लिए अब और दण्ड मिल नहीं सकता था। एक ही अपराध के लिए दूसरी बार दण्ड नहीं दिया जा सकता था। रुपया कोई धरोहर तो थी नहीं, जो धरोहर की चोरी मानी जाती। इस कारण मोतीराम का नाम दस नम्बर के रजिस्टर में लिखकर, उसे छोड़ दिया गया और रुपया सेठ साहब को दे दिया गया।

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