लोगों की राय

उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

270 पाठक हैं

बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


उसने राजा साहब को पूर्ण वृत्तान्त बताकर मोतीराम की दुष्टता का भँड़ा फोड़ दिया। राजा साहब सुनकर क्रोध से भर गये। उनका कहना था कि सेठ करोड़ीमल का रुपया उनको वापिस दिलवाना चाहिए। उनका विचार था कि जब इस आदमी के पास रुपया नहीं रहेगा, तो साँप के दाँत निकाल लिए जाने की भाँति यह हानिकर नहीं रहेगा।

मोतीराम को बुलाया गया। वह धर्मशाला में टिका हुआ था। जब वह उपस्थित हुआ तो राजा साहब ने कहा, ‘‘मोतीराम ! हमने एक आदमी कल देवगढ़ जाँच करने के लिए भेजा था। उसकी जाँच से हमको विश्वास हो गया है कि तुम्हारी बातें प्रायः ठीक है।

‘‘हम यह तो समझ गये हैं कि फकीरचन्द जैसे आदमी को देवगढ़ से निकाल देना चाहिए, परन्तु पट्टा रद्द करवाने की बात बहुत कठिन है। वकील साहब की सम्मति है कि मुकद्दमा हाईकोर्ट तक जरूर जायगा और पूरा मुकद्दमा लड़ने के लिए वकील पाँच हजार रुपये एकदम माँगता है। हम इतना रुपया खर्च करना पसन्द नहीं करते। यदि तुमको इस विषय में कुछ करना है, तो कम-से-कम पाँच हजार रुपये हमारे खजान्ची के पास जमा करा दो। तभी हम इस काम में आगे चल सकते हैं। हम यह वचन देते हैं कि इस भूमि का पट्टा हम तुमको दे देंगे और इस पाँच हजार रुपये के बदले में दस वर्ष तक तुमसे कोई लगान नहीं लेंगे।’’

‘‘पर महाराज ! इतना रुपया तो मेरे पास है नहीं।’’

‘‘यह तो तुमने ही कहा था कि पट्टा रद्द कराने के लिए खर्चा तुम दोगे। यदि तुम यह नहीं कर सकते तो हमारे लिए यह मुकद्दमा चलाना बहुत कठिन है।’’

‘‘महाराज ! यदि इस मुकद्दमे में हमको सफलता न मिली तो मेरे रुपये का क्या होगा?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book