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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


जब मोतीराम बयान देकर चला गया तो राजा साहब ने मैनेजर से कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि इस विषय में आप स्वयं जाँच करें। यदि इसमें कई तथ्य है, तो इसका उपाय करने के विषय में विचार कर लिया जायगा। इतना ध्यान रखियेगा कि मोतीराम को पता न चले कि आप जाँच करने जा रहे हैं।’’

मैनेजर देवगढ़ पहुँचा तो उसने जाँच आरम्भ कर दी। अभी वह गाँव के लोगों से पूछ-गीछ ही कर रहा था कि फकीरचन्द मिलने के लिए आ गया। जब वह आया तो मैनेजर उसकी निर्भीक आँखों को देख समझ गया कि मोतीराम के लगाये आरोप सत्य नहीं हो सकते। मैनेजर ने यह बताये बिना कि आरोप लगाने वाला कौन है, फकीरचन्द से भी प्रश्न पूछे। तदनन्तर मैनेजर ने शेषराम, गिरधारी और अन्य गाँव वालों से पूछना आरम्भ कर दिया।

मैनेजर को यह जानकर भारी आश्चर्य हुआ कि मोतीराम शेषराम का भाई है। जब गिरधारीलाल को यह पता चला कि मोतीराम उसकी पत्नी और फकीरचन्द के विरुद्ध आरोप लगा रहा है, तो उसने मैनेजर को बता दिया की वह बम्बई के एक सेठ का पाँच हजार रुपया चुराने के अपराध में तीन वर्ष की कैद भोग चुका है और उसने रुपया ऐसे छिपाकर रखा हुआ था कि वह पुलिस को मिल नहीं सका। गिरधारी ने सेठ का नाम और पता भी बता दिया।

मैनेजर इस आदमी के साहस पर चकित रह गया। अपनी ही बहिन की चरित्रहीनता के विषय में झूठे आरोप लगाकर, वह अपने चोरी किये हुए रुपये का दुरुपयोग करना चाहता है, इस घृणित प्राणी की करतूत देख वह मन में निश्चय कर बैठा कि इसको दण्ड दिलवाना चाहिए।

इस प्रकार दिन-भर देवगढ़ में रहकर मैनेजर झाँसी लौट गया।

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