उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘ठीक है महाराज !’’ मोतीराम ने कह दिया, ‘‘परन्तु यह जाँच फकीरचन्द और चौधरी रामहरष की उपस्थिति में न की जाय !’’
‘‘रामहरष में तुमको क्या खराबी प्रतीत हुई है?’’
‘‘वह लड़की बेचने में फकीरचन्द का एजेण्ट बना हुआ है। इससे उसको सैकड़ों रुपये की आय हो रही है।’’
‘‘यदि पट्टा तुम्हारे नाम होगा तो क्या उससे काम नहीं लोगे?’’
‘‘मैं विचार करूँगा। जिससे मुझको अधिक लाभ होता, मैं उसको ही रखूँगा।’’
इसपर महाराज ने आज्ञा दे दी–‘‘मोतीराम ठीक कहता है। जिनको फकीरचन्द से लाभ हो रहा है, उनसे जाँच करने का कुछ भी लाभ नहीं।’’
‘‘अच्छा मोतीरामजी ! लिखाओ, क्या लिखाते हो?’’
मोतीराम ने बताया, ‘फकीरचन्द के पास एक मजदूर शेषराम है। उसको वह तीस रुपये मासिक वेतन देता है, जबकि अन्य सबको यह बीस रुपये देता है। शेषराम की कह बहिन है मीना। मीना का पति बम्बई गया हुआ है और बेचारा घर के खर्च के लिए काफी धन नहीं भेजता। फकीरचन्द शेषराम के द्वारा मीना के सम्बन्ध बनाये हुए है और उसको रुपये देता रहता है।
‘‘मीना के द्वारा और भी गाँव की लड़कियाँ खराब की जा रही हैं।’’
जब मोतीराम के बयान लिखे जा चुके तो राजा साहब ने मोतीराम को कहा, ‘‘अच्छी बात है, हम जाँच करेंगे। साथ ही पट्टे की नकल वकील को दिखाकर मालूम करेंगे कि क्या किया जा सकता है?’’
मोतीराम इस आश्वासन से प्रसन्न था। वह समझता था कि किसी बेलदार को भेजा जायगा। इस कारण उसने वहाँ के कर्मचारियों से पता करना आरम्भ कर दिया कि कौन जाँच करने जा रहा है।
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