उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
|
270 पाठक हैं |
बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘अब यह भला पुरुष आपके पास आया है।’’
‘‘हम समझते हैं कि प्रजागणों की रक्षा करना हमारा भी कर्त्तव्य है। यदि यह बात सत्य है कि उसने देवगढ़ में उधम मचाया हुआ है, जैसा यह कहता है तो फिर हम उसके पट्टे को रद्द कराने का यत्न करेंगे।
‘‘यह ठीक है कि हमने यह पट्टा दिया है, परन्तु उस वचन-पत्र में कोई-न-कोई कानूनी दोष निकालकर पट्टे को रद्द किया जा सकता है। मोतीराम यह कहता है कि यदि हम चाहें तो कानूनी खर्चा यह देगा और ढाई हजार उस दिन ही दे देगा, जिस दिन पट्टा इसके नाम होगा।’’
मैनेजर इस बात को सुन भौंचक्का हो मुख देखने लगा। इसपर भी वह महाराज को यह प्रकट होने देना नहीं चाहता था कि वह महाराज की आय में वृद्धि का विरोध कर रहा है। इस कारण उसने कहा, ‘‘महाराज ! विचार तो सुन्दर है ! परन्तु यदि यह चरित्र-सम्बन्धी आरोप सत्य न हुआ, तब भी आप वह पट्टा रद्द कराने का विचार रखते हैं क्या?’’’
‘‘हम समझते हैं कि उस अवस्था में पट्टे पर झगड़ा करने की आवश्यकता नहीं। हम पट्टा रद्द इसलिए करना नहीं चाहते कि हमारी आय में वृद्धि होगी, प्रत्युत इसलिए कि किसी दुष्ट आदमी को हम अपने इलाके में बसने देना नहीं चाहते।’’
‘‘तब तो महाराज ! सबसे पूर्व इस व्यक्ति के बयान लिख लिये जाएँ। जिन-जिन औरतों को उस लड़के ने भ्रष्ट किया है, उनके नाम और उसमें साक्षियों के नाम लिख लिए जाएँ। मेरा विचार है कि प्रारम्भिक जाँच तो इसकी रिपोर्ट लिखने के पश्चतात् ही हो सकती है। पीछे यदि यह चाहे, तो इसके सम्मुख भी जाँच की जा सकती है।’’
|