उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
|
270 पाठक हैं |
बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘जी नहीं, चालीस देता हूँ।’’
‘‘और किसी को भी चालीस रुपये देते हो?’’
‘‘जी हाँ; एक और है। उसका नाम गिरधारीलाल है।’’
‘‘औरों को क्या देते हो?’’
‘‘किसी को बीस और किसी को पच्चीस रुपये। इनको अधिक इस कारण देता हूँ कि ये दोनों नये प्रकार के हल चलाना जानते हैं। कटाई और पिसाई की मशीन भी चला सकते हैं। वे आरा मशीन चलाते हैं आटे की चक्की भी चलाते हैं। अन्य मजदूर यह काम नहीं कर सकते।’’
‘‘शेषराम की बहिन कहाँ रहती हैं?’’
‘‘गाँव में ही रहती है।’’
‘‘उसका नाम मीना है क्या?’’
‘‘मैं नहीं जानता। उसका घरवाला, जो बम्बई में था, अब यहाँ आ गया है। उसका नाम ही गिरधारी है।’’
‘‘देखो फकीरचन्द ! तुम अभी बालक मात्र हो। यहाँ के देहाती बहुत ही क्रूर स्वभाव के हैं। यदि तुमने किसी भले घर की औरत को खराब किया, तो ये लोग बलवा कर देंगे और फिर तुम्हारा यहाँ रहना असम्भव हो जायगा।’’
‘‘तो मैनेजर साहब ! मेरी अनुपस्थिति में यहाँ के लोगों से जाँच कर लीजिए और उसके पश्चात् मुझको आज्ञा करिये। मैं तो आपकी प्रजा हूँ। आपको रुष्ट कर तो मैं यहाँ रह नही सकता।’’
|