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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘मैं तुमको तुम्हारी सफलता पर बधाई देता हूँ, परन्तु इस सब सफलता के साथ कुछ ऐसी खबरें आने लगी हैं कि तुम अपना जीवन ठीक नहीं रख सके। राजा साहब इसको पसन्द नहीं करते।’’

‘‘मैं समझता हूँ कि किसी ने आपको ऐसी बात कही है, जिसमें कुछ भी सच्चाई नहीं। क्या सूचना मिली है आपको?’’

‘‘यह मीना कौन है?’’

फकीरचन्द शेषराम की बहिन का नाम नहीं जानता था। इस कारण उसने कह दिया, ‘‘मैं इस नाम की किसी स्त्री को नहीं जानता।’’

‘‘मैंने सुना है कि वह यहाँ की रहने वाली एक युवती है, जिसका घरवाला बम्बई में नौकरी करने गया हुआ है। उससे तुम्हारी मित्रता है।’’

‘‘मैं ऐसी किसी औरत को नहीं जानता।’’

‘‘मैं इस विषय की जाँच करने आया हूँ।’’

‘‘तो करिये। यह समाचार असत्य है।’’

‘‘तुम्हारे पास कोई शेषराम नाम का मजदूर काम करता है?’’

‘‘हाँ, करता है।’’

‘‘उसको तुम अपने सब कर्मचारियों से अधिक वेतन देते हो?’’

‘‘जी नहीं। मेरा इंजिन चलाने वाला पचास रुपये पाता है।’’

‘‘और शेषराम को तुम तीस रुपये देते हो?’’

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