उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
अगले दिन शेषराम उसको फकीरचन्द के पास ले गया। गिरधारी देखने में स्वस्थ और समझदार प्रतीत होता था। इस कारण फकीरचन्द ने न केवल उसको नौकर ही रख लिया, प्रत्युत उसने गिरधारी को नये प्रकार के हलों पर काम करने के लिए कृषि-विभाग के कर्मचारी के पास काम सीखने के लिए भेज दिया। उसको यह बता दिया गया कि जब वह काम सीख जाएगा तो उसको चालीस रुपया महीना वेतन मिला करेगा। शेषराम भी इस शर्त पर काम सीख रहा था। साथ ही शेषराम को इंजिन चलाने अथवा आरा मशीन पर काम करने का ढँग सिखाया जा रहा था।
नये प्रकार के हल चलाये तो बैलों से ही जाते थे, परन्तु बैल बलवन्त होने चाहिए थे। इन हलों से कम परिश्रम से और थोड़े काल में खेत जोते जाते थे। इस कारण फकीरचन्द पहले ही वर्ष में पचीस बीधा भूमि में गेहूँ बो सका। शेष में से दस बीघा में उसने गन्ना लगा दिया और पाँच बीघा में नींबू और आम के पेड़ लगा दिये। इस सबका परिणाम यह हो रहा था कि आदमी तो कम रखने पड़ रहे थे और काम अच्छा हो रहा था।
फकीरचन्द ने आदमी वेतन पर रखे हुए थे और वह जानता था कि खेती-बाड़ी का काम वर्ष-भर नहीं चलता। किसान वर्ष में नौ मास खाली रहता है। अतः उसके लिए यह समस्या थी कि वह वेतन-धारी नौकर के लिए निरन्तर काम उत्पन्न करता रहे।
वह शेषराम और गिरधारी को चालीस रुपये मासिक देता था, अर्थात् प्रत्येक को वर्ष में चार सौ अस्सी रुपया। इंजिन चलाने वाले को वह पचास रुपये देता था, अर्थात् वर्ष में छः सौ रुपया। अतः वह इनसे चक्की चलाने, आरा मशीन चलाने और पम्प को ठीक रखने का काम भी लेता था।
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