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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


इस बात को सुन मोतीराम बहुत परेशान हुआ। आखिर स्वभाव-वश दो सौ रुपया उसने चुराकर पैदा करने का विचार किया। तीन वर्ष जेल में रहने के कारण वह अब पहले की भाँति सरल-चित्त चोर नहीं रहा था। वह जानता था कि वह गाँव में तीन वर्ष पश्चात् आया है और यदि आते ही किसी के घर चोरी हो गई तो पुलिस तथा और लोगों को उसपर ही सन्देह होगा और वह पकड़ा जायेगा। इस कारण वह विचार करता था कि चोरी करनी है तो किसी दूसरे नगर में जाकर करनी चाहिए। ऐसा विचारकर वह पुनः घर से निकल गया। इस बार गया तो वह पाँच वर्ष के पश्चात् लौटा। इस समय तक उसकी बहिन का विवाह हो चुका था। विवाह होने के पश्चात् उसके बच्चा हुआ और उसका घरवाला, उसको वहीं घर में छोड़ नौकरी करने बम्बई चला गया। वहाँ उसको साठ रुपये महीना मिलते थे, जिसमें से बीस रुपया वह अपनी पत्नी और बच्चे के लिए घर भेज देता था।

मोतीराम का छोटा भाई शेषराम गाँव में ही था और एक वर्ष से फकीरचन्द के पास नौकर हो गया था। शेषराम समझदार और परिश्रमी मजदूर था। कुछ मास तक उसका काम देखने पर फकीरचन्द ने उसको अन्य मजदूरों पर मेट बना दिया। वह उन सबसे काम करवाता था।

फकीरचन्द की माँ द्वारा दिये भोज के केवल दो दिन पूर्व मोतीराम लौटा था। इस बार वह अपने साथ पाँच हजार से ऊपर रुपये लाया था। मंगतराम ने पूछा, ‘मोतीराम ! इतना रुपया कहाँ से मिला?’’

उसने झूठ बोल दिया। उसने कहा, ‘‘बाबा ! कमाकर लाया हूँ। अब तुम मेरा विवाह कर दो, जिससे सुखपूर्वक जीवन चल सके।’’

मंगतराम इससे अति प्रसन्न हुआ।

पहले ही दिन मोतीराम ने शेषराम को काम पर जाते देख पूछ लिया, ‘‘कहाँ काम करते हो?’’

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