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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


इस प्रकार वह सब कर्मचारियों के विषय में पूरी जानकारी लिखने लगा। तीस वयस्क व्यक्ति थे, जिनको सपरिवार निमन्त्रण दिया गया था। पचास बच्चे थे। इन सब को देने के लिए उसने कपड़ों का, रुपयों का और भोज के सामान का हिसाब लिख लिया।

अगले दिन फकीरचन्द की माँ के घर हलवाई लग गये और पूरी-हलुवा, शाक, भाजी, मिठाई आदि बनने लगा। प्रातः काल मकान की नींव रखी गई और पण्डित को दान-दक्षिणा तथा रेशमी वस्त्र दिए गये। मध्याह्न के समय उसके यहाँ काम करने वाले तथा उनके बाल-बच्चे और अन्य गाँव के आदमी, जिनसे फकीरचन्द का किसी प्रकार का भी सम्बन्ध था, एकत्रित हो गए और सबको पेटभर खाना दिया गया।

जब सब खा चुके और सबको वस्त्र तथा रुपये मिल चुके तो फकीरचन्द की माँ ने उनको उस दिन के आयोजन का उद्देश्य बताया उसने कहा, ‘‘आज हमको जंगल में कान आरम्भ किए एक वर्ष हुआ है। इस दिन हमने भगवान् का नाम लेकर धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की थी। ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान ने हमारी सुन ली है। उसने ही हमको पुरुषार्थ करने के लिए उत्साह दिया और फिर उस उत्साह का फल दिया है।

‘‘मैंने भगवान् से उन सब के लिए, जो हमारे खेतों में काम करने आये थे अथवा आने वाले हैं, प्रार्थना की थी। अतः जब भगवान् ने हम सब के प्रयत्न का फल देना आरम्भ किया है, तो आपको उस फल के भोग करने के लिए निमन्त्रण दिया है।

‘‘आज आप सबकी ओर से और अपनी ओर से मैं पुनः परमात्मा से कर-बद्ध प्रार्थना करती हूँ कि वे हम में भला-बुरा पहचानने की बुद्घि दें, काम करने की शक्ति दें, सुख-दुःख सहन करने की क्षमता दें और सबके कल्याण की भावना दें।’’

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