उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘इसमें हठ की क्या बात है? यह मेरी माँग है। आप देना चाहते हैं, तो माल आपको मिलेगा। नहीं, तो मैं अन्य स्थान पर बेच दूँगा।’’
‘‘चलो छोड़ों। लिखत कहाँ होगी?’’बड़ी आयु वाले ने कहा।
‘‘गाँव चलकर। पाँच सौ इसी समय मिलना चाहिए। शेष पाँच सौ उस दिन, जिस दिन माल उठाना आरम्भ होगा।’’
‘‘लकड़ी पर निशान तो आज ही लगाएँगे।’’
‘‘हाँ, यह अभी भोजन के पश्चात् हो जाएगा।’’
इस प्रकार पहला सौदा फकीरचन्द ने अपने विचार में बहुत ही सन्तोषजनक किया। चौधरी रामहरष के सामने लिखत-पढ़त हो गई और व्यापारियों ने पाँच सौ रुपया फकीरचन्द को दे दिया।
भोजनोपरान्त फकीरचन्द पुनः व्यापारियों के साथ जंगल में गया और कटी लकड़ी पर निशान लगाकर, उनको स्टेशन पर छोड़ने चला गया। सायंकाल वह घर पहुँचा तो चौधरी ने कहा, ‘‘बाबू ! व्यापारी तुमको लूटकर ले गये हैं।’’
‘‘सच चौधरी?’’ फकीरचन्द ने अविश्वास के भाव में पूछा।
‘‘हाँ, माधो कह रहा था कि यह माल पाँच हजार का है।’’
फकीरचन्द अभी तक यह समझ गया था कि चौधरी तोआलोचना करना जानता है। इस पर भीमाधो की बात सुन उसने कहा, ‘‘चौधरी ! जरा उसको बुलाओं तो।’’
चौधरी ने माधो को बुला भेजा। जब वह आया तो कहने लगा, ‘‘बाबू ! पाँच हजार नहीं तो चार हजार तो मैं दे देता। बात थी नकद देने की। वह मेरे पास था नहीं।’’
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