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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


फकीरचन्द मन में विचार करता था कि तीन दिन तक खाली बैठे रहना तो ठीक नहीं। अतः उसने कहा, ‘‘चौधरी ! इतने बड़े गाँव मे और जंगल के समीप होने पर लकड़ी काटने का काम केवल वे लोग ही करते हैं? और लोग नहीं हैं, जो यह काम कर सके?’’

‘‘नहीं बेटा ! यहाँ दूसरे लोग काम नहीं कर सकते। कोई करे तो वे नाराज हो जाएँगे।’’

यह बात फकीरचन्द की समझ में नहीं आई। इस कारण उसने अपनी समस्या उस दुकानदार के सामने जाकर रख दी, जिससे उन्होंने रात और अब भोजन-सामग्री खरीदी थी। जब उस दुकान-दार से लकड़हारों के विषय में पूछा गया तो उसने कहा, ‘‘बाबू ! यहाँ मजदूर तो मिल जाएँगे। तुम उनको कुल्हाड़े ले दोगे तो वे लकड़ी काटने का काम भी कर देंगे।’’

‘‘चौधरी तो कहता है कि लकड़ी काटने का काम कोई और करेगा तो झगड़ा हो जाएगा।’’

इसपर उस दुकानदार ने मुस्कराकर कहा, ‘‘तभी तो चौधरी की सब जायदाद और मकान गिरों रखे हैं।’’

‘‘कुल्हाड़े कहाँ मिल सकेंगे !’’

‘‘बने बनाये तो मिल नहीं सकते। हाँ, लोहार के पास जाकर कहोगे, तो वह बना देगा।’’

‘‘लोहार किधर रहता है?’’

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