उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
|
8 पाठकों को प्रिय 270 पाठक हैं |
बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
6
जब करोड़ीमल अपने विचारों की व्याख्या कर रहा था, तो उसकी पत्नी फकीरचन्द की माँ को अपना परिचय दे रही थी। ‘‘सेठजी डीडवाना के रहने वाले हैं। इनकी माता पड़ोसियों के बर्तन मसला करती थीं। ये भागकर बम्बई चले गये और वहाँ एक आढ़त की दुकान पर मुनीमी करने लगे। तदुपरान्त कुछ रुपये एकत्रित कर ये सट्टा करने लगे और कुछ ही वर्षों में लखपति हो गये। तदनन्तर इन्होंने ऊन की आढ़त आरम्भ कर दी। अब बम्बई, नागपुर, दिल्ली, लाहौर और पेशावर में इनकी बड़ी-बड़ी कोठियाँ है। वहाँ पर माल खरीदा जाता है; छाँटा और बाँधा जाता है। फिर विदेशी को भेजा जाता है। कई लाख वार्षिक की आय है, पर ये हैं बड़े कंजूस। इस पर भी भगवान् की इन पर अपार कृपा है। इनकी एक लड़की, जो इनकी पहली पत्नी से थी, अब सेठ कुन्दनलाल भगेरिया के पुत्र से विवाह दी गई है। उसके विवाह पर इन्होने पाँच लाख दहेज में दिया था। इनकी पहली पत्नी का देहान्त हुआ तो मुझको अपने गाँव से विवाह लाये। अब मेरे दो बच्चे हैं, एक लड़का एक और लड़की। सेठजी थर्ड क्लास में यात्रा करते है। यदि हम साथ न होते तो कदाचित् बिना टिकट के यात्रा करते और टिकट बाबू को पाँच रुपये देकर छूट जाते।
‘‘इस पर भी ये हैं बहुत ही सज्जन व्यक्ति। नित्य भगवन भजन करते हैं और दान-दक्षिणा भी देते हैं। मेरा बहुत मान करते हैं। जब भी कोई बात कहती हूँ, तो तुरन्त मान जाते हैं।’’
‘‘यह लड़का क्या पढता है?’’ रामरखी ने पूछा।
‘‘यह मैट्रिक पास है। हिसाब-किताब का काम बहुत अच्छी तरह जानता है। आजकल यही विभिन्न कोठियों का निरीक्षण करता है।’’
जब परस्पर परिचय हुआ तो सेठजी ने अपने कटोरदान में से खाना निकाल फकीरचन्द से कहा, ‘‘आओ खाएँ।’’
‘‘हम अभी खाकर आये हैं।’’
सेठानी ने फकीरचन्द की माँ से भी भोजन के लिए पूछा। तदु-परान्त वे सब भोजन करने लगे। रोटियाँ काले रंग की थीं। रामरखी ने पूछा, ‘‘ये किस चीज के आटे की हैं?’’
|