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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘बिहारी को तीन महीने की छुट्टी ले दी है। मैं समझती हूँ कि इतने में तुम्हारा प्रबन्ध भली-भाँति कर पाऊँगी। हाँ, यदि प्रबन्ध न हो सका, तो तुमको अपने साथ वापस लेती आऊँगी।’’

‘‘पर माँ ! वहाँ तुमको बहुत कष्ट होगा।’’

‘‘यही जानकर तो जाने का निर्णय किया है। साथ-साथ रहेंगे तो कष्ट बँट जायगा।’’

‘‘नहीं माँ ! अभी मुझे ही जाने दो।’’

‘‘देखो फकीर ! मैं माँ हूँ और माँ अपने बच्चों को कष्ट में नहीं झोंक सकती। मैं जानती हूँ कि वहाँ कष्ट होगा और मैं साथ जाकर तुम्हारा कष्ट कम कर सकूँगी।’’

फकीरचन्द को अपनी माँ के इस निर्णय पर विस्मय हुआ। इस निर्णय में उसको केवल माँ का अपने प्रति स्नेह ही दिखाई दिया।

रामरखी ने अपने साथ कम-से-कम सामान लिया था। और चलते समय मकान को ताला लगा, वे रेलवे स्टेशन पर जा पहुँचे।

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