उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘छोड़िये इस चर्चा को। मैं बच्चे को चम्मच से दूध पीना सिखा दूँगी। आपने चोरी नहीं की तो अच्छा ही किया है। मुझे इसका गर्व है।’’
बात चल गई। जहाँ उसके साथी सैकड़ों रुपये मासिक की आय करने लगे, वहाँ वह केवल चालीस रुपये महीने में निर्वाह करता रहा, महँगाई बढ़ती गई। खाना-पीना कम होता गया और धनराज के मन में एक बोझा-सा बना रहा कि वह अपनी पत्नी और बच्चे के प्रति अपना उत्तरदायित्व नहीं निभा रहा।
जब सन् १९२० में धनराज का दूसरा लड़का बिहारीलाल हुआ तो वह काम अधिक और खुराक कम, गंदी गली और तंग मकान में रहने के कारण बीमार पड़ गया। उसको ज्वर हुआ तो पहिले निदान किया गया कि न्योमोनिया है, जब ज्वर कुछ लम्बा चला तो कहा गया कि टाईफॉयड है। तत्पश्चात् यह निश्चय हो गया कि तपेदिक है।
दो वर्ष तक धनराज बीमार रहा। पहले पूरे वेतन पर छुट्टी मिली, फिर आधे वेतन पर, तदनन्तर बिना वेतन के छुट्टी पर रहा। रामरखी ने अपने सब आभूषण बेचकर चिकित्सा करवाई, परन्तु कुछ लाभ नहीं हुआ। जब फकीरचन्द छः वर्ष का था तो उसके पिता का देहान्त हो गया।
इस समय तक घर की आर्थिक अवस्था इतनी दुर्बल हो चुकी थी कि अन्त्येष्टि संस्कार करने के लिए भी उधार लेना पड़ा। धनराज का पिता स्वयं कठिनाई से निर्वाह करता था। इस कारण पतोहू की कुछ भी सहायता नहीं कर सका।
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