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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


चौथे के दिन धनराज के सम्बन्धियों और मित्रों ने, रिवाज के अनुसार, रामरखी को रुपये दिये। फकीरचन्द तथा बिहारीलाल के कपड़े दिये। सब मिला-जुलाकर ढाई सौ रुपया और कुछ कपड़े एकत्रित हो गये। इसमें से अन्त्येष्टि संस्कार पर उधार लिए तीस रुपये वापस कर दिये गए। शेष को लेकर फकीरचन्द की माँ विचार करने लगी कि इतनी-सी पूँजी से वह अपना लम्बा जीवन तथा बच्चों का पालन-पोषण कैसे कर सकेगी।

क्रिया-कर्म हो चुकने पर उसकी सास और जेठानी ने पूछा, ‘‘क्यों रामरखी ! तुम्हें तो अभी एक वर्ष तक शोक में बैठना है न?’’

रामरखी तो अपनी विकट परिस्थिति पर पहिले से ही विचार कर रही थी। लाहौर की रिवाज के अनुसार उसको एक वर्ष तक अपने मकान के नीचे के कमरे में, नित्य प्रातःकाल से सांयकाल तक शोकमुद्रा में बैठना चाहिए। उसको मैले कपड़े पहिन शोक प्रकट करने आई स्त्रियों के साथ बैठकर रोना और शोक मनाना चाहिए। यदि कपड़े मैले न हों तो चादर और कुर्त्ते की स्लेटी रंग से मटियाला कर लेना चाहिए।

वह विचार करती थी कि यह सब कुछ किया जा सकता है, परन्तु पालन-पोषण का क्या होगा? क्या इस प्रकार वर्ष भर बैठने से उनकी रोटी इत्यादि का प्रबन्ध हो जायगा? मन में उठ रहे इस प्रश्न को, उसने अपनी सास और जेठानी के सामने रख दिया। उसने कहा, ‘‘माता जी ! फकीरचन्द के पिता के देहान्त का शोक मुझको कितना है यह कहने की बात नहीं। मैं इस प्रकार बैठूँगी, तब शोक का अनुमान लग सकता है, ऐसा मैं नहीं मानती। साथ ही मेरे सामने तो समस्या यह है कि अब जीवन कटेगा कैसे? यदि ये बच्चे न होते तो मैं आज ही रावी में डूबकर शरीर त्याग देती; परन्तु ये हैं। ये उनकी यादगार हैं। इनको पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाना भी तो एक काम है। मैं यही विचार कर रही हूँ कि यह कैसे करूँगी। वर्ष भर तक शोक में बैठे रहने से तो यह काम हो नहीं सकेगा।’’

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