उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
कई दिन तक रामचन्द्र जंगलों में घूमता रहा और ऊबड़-खाबड़ भूमि को देख, वह मन में यह निश्चय नहीं कर सका कि कौन-सी भूमि वह ले, जिससे उसको पर्याप्त लाभ हो सके। एक दिन वह माँ से आकर बोला, ‘‘माँ ! मैंने सब हिसाब-किताब लगाकर देख लिया है कि खून-पसीना एक करने पर भी दो-तीन हजार से अधिक लाभ नहीं हो सकता।’’
‘‘बेटा ! फकीरचन्द की माँ मुझको बता रही थी कि पहले ही वर्ष उनको यहाँ से पन्द्रह हजार रुपये का लाभ हुआ था। इस वर्ष वे हिसाब करने वाले हैं और यह आशा कर रहे हैं कि तीस से चालीस हजार के बीच लाभ होगा।’’
रामचन्द्र ने कहा, ‘‘माँ ! यह सब बकवास है। इतना लाभ खेतीबाड़ी से हो नहीं सकता।’’
‘‘फकीरचन्द से बात कर लो न?’’
‘‘वह तो मुझे धोखे में डाल रहा है। मैंने इसके एक आदमी से पता किया है कि जो कुछ इसको लाभ हुआ है, वह जंगल की लकड़ी बेचने से हुआ है। हमारी भूमि में लकड़ी बहुत कम है। जब इसकी लड़की दो-तीन वर्ष में बिक जायगी, तब यहाँ भूखा मरने लगेगा।’’
माँ रामचन्द्र की बात सुनकर भारी परेशानी अनुभव करने लगी थी। उसको चिन्ता इस बात की लगने लगी थी कि उसका लड़का फकीरचन्द से लड़ पड़ेगा। इस कारण वह दोनों में उत्पन्न हो रहे मिथ्या भ्रम को दूर करना चाहती थी। उसने कहा, ‘राम ! आओ मेरे साथ। फकीरचन्द से संशयों का निवारण करना अत्यावश्यक है। मैं चाहती हूँ कि उसके अनुभव से लाभ उठाया जाय।’’
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