उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘माँजी ! यह भूमि उतनी अच्छी नहीं, जितनी मेरी है। इस पर भी मैं ऐसा नहीं समझता कि वह लाभ नहीं देगी। एक बात में सेठजी ने भूल की है। वह भूमि लेने में नहीं, प्रत्युत रामचन्द्र को इस काम के लिए यहाँ भेजने में है। रामचन्द्र व्यापारी का बेटा है। व्यापारी लोग शरीर से मेहनत करना नहीं जानते। ये तो गणित के अंकों से खेलना चाहते हैं। यहाँ तो वह सफल हो सकता है, जो फावड़ा चलाने के मूल्य को समझता हो।’’
‘‘तो क्या तुम, जब तुम यहाँ आये थे, फावड़ा चला सकते थे?’’
‘‘जी हाँ, मैं फावड़ा चलाने की कीमत को समझता था और समय की कीमत को भी जानता था।’’
‘‘तो बेटा ! उसो समझा दो न। वह भी समझ जायेगा।’’
‘‘यत्न तो कर रहा हूँ। इसमें सफलता की आशा कम है।’’
‘‘उसको आने दो, मैं समझाने का यत्न करूँगी।’’
पन्नादेवी तो फकीरचन्द का अर्थशास्त्र समझती थी। वह एक गरीब की लड़की थी। कठिनाई रामचन्द्र की थी। वह, जहाँ मेहनत का प्रश्न आता था, वहीं अपनी वस्तुओं की समालोचना आरम्भ कर देता था। इसमें कारण था। उसे पिता के पास अटूट सम्पत्ति होने का ज्ञान था। वह देखता था कि जो कुछ उसके पास है, रुपया खर्च कर उसको अधिक अच्छा कर सकता है। इसके विपरीत फकीरचन्द जानता था कि उसके पास कुछ विशेष सम्पत्ति नहीं है। अपने पास की वस्तुओं को अच्छा करने का एक ही उपाय उसके पास था और वह था परिश्रम। इस कारण वह समझता था कि अदल-बदल से उन्नति करने के स्थान, उसको भूमि पर परिश्रम करना है। इससे ही वह इसको बढ़िया बना सकता है।
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