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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘हाँ, यह ठीक रहेगा। इतना कह फकीरचन्द वहाँ से चला गया।

फकीरचन्द के लौट जाने पर रामचन्द्र ने चौधरी से कहा, ‘‘फकीरचन्द मुझको मूर्ख समझता है। इसी कारण जो काम मुझे करना चाहिए, वह स्वयं करने लगा था।’’

चौधरी रामहरष पिछले दिन से ही देख रहा था कि इस सेठ में और फकीरचन्द में बन नहीं सकती। इस कारण उसने मन में यह निश्चय कर लिया था कि इस सेठ को यहाँ से भगा देगा। पिछली रात मजदूरों के विषय में, वह जानता था कि वे उसकी हँसी कर रहे थे। मजदूरों से बातचीत होते समय भी वह जानता था कि जिनको बयाना दिया जा रहा है वे काम नहीं कर सकते।

मध्याह्न के समय फकीरचन्द जब भोजन करने आया तो पन्नादेवी उससे आकर पूछने लगी, काम आरम्भ हो गया बेटा?’’

‘‘नहीं माँजी ! रामचन्द्र को वह भूमि, जिसका पट्टा सेठ साहब ले गये हैं, पसन्द नहीं। वह काम आरम्भ करने से पूर्व यह देखना चाहता है कि क्या वह इस भूमि पर काम कर कुछ लाभ भी उठा सकता है अथवा नहीं। वह राजा साहब की दूसरी भूमि देखना चाहता है। यदि और अच्छी भूमि दिखाई दी, तो वह पट्टा बदल-वाना चाहेगा।’’

‘‘वह मूर्ख है फकीर ! मैं उसको यहाँ इसलिए नहीं लाई कि वह अपने पिता के काम में मीन-मेख निकाले।’’

फकीरचन्द कपड़े बदल स्नानागार में चला गया। वहाँ हाथ-मुख धोकर बाहर आ भोजन करने चौके में चला गया। रामचन्द्र की माँ कितनी ही देर तक वहाँ खड़ी विचार करती रही, जहाँ फकीरचन्द ने उसको रामचन्द्र के विचार बताये थे। पश्चात् वह चौके में आकर फकीरचन्द के पास बैठ पूछने लगी, ‘‘बेटा ! तुम क्या समझते हो कि यह भूमि ठीक रहेगी अथवा नहीं?’’

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