उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
|
8 पाठकों को प्रिय 47 पाठक हैं |
प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
3
नगर चैन के महल में पहुँचते ही अकबर ने हुक्म दिया, ‘‘इस लड़की को गुसल करा साफ-सुथरे वस्त्र पहना, श्रृंगार कर हमारे साथ खाने पर लाया जाए।’’
अकबर स्वयं आराम करने चला गया। नगर चैन की मुहाफिज एक प्रौढ़वस्था की स्त्री थी। वह सुंदरी को बाँह से पकड़कर गुसलखाने में ले गई। वहाँ दो स्त्रियों की सहायता से सुंदरी के कपड़े उतार उसे साबुन, उबटन लगा स्नान कराया गया। उसके बदन पर से भटियारिन की भट्टी की कालख उतारी गई। उसे इत्र, तेल लगाया गया और फिर सुंदर जरीदार वस्त्र पहनाए गए।
जब इस प्रकार सुंदरी को बलि के लिए तैयार किया गया तो मुहाफिज स्त्री ने कहा, ‘‘तुम तो गजब की खूबसूरत हो।’’
सुंदरी ने कहा, ‘‘पर माँ! मेरी तो शादी हो चुकी है।’’
‘‘किससे?’’
सुंदरी मुख देखती रह गई। वह अपने पति का नाम-धाम नहीं जानती थी। उसने बहाना बना दिया, ‘‘हम हिंदुओं में अपने पति का नाम नहीं लेते।’’
‘‘वह कहाँ रहता है?’’
‘‘आगरा में रहता है। मेरा गौना कुछ ही दिनों में होनेवाला है।’’
‘‘तो हो जाएगा। जानती हो कि तुम्हें यहाँ कौन लाया है?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘शहंशाह-ए-हिंद जलालुद्दीन अकबर! नाम सुना है कभी?’’
|