उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
विवाह हो गया और यात्री एक रात सराय में सुंदरी के साथ रहकर अपने घर आगरा चला गया। वहाँ से वह नहीं लौटा। जाते समय वह सुंदरी को अपना पारिवारिक चिह्न एक अँगूठी दे गया था। उसने सुंदरी को एक स्वर्ण मुद्राओं की थैली भी दी थी। सुंदरी अपने कमरे में यह सब रखे हुए अपने पति की प्रतीक्षा करती हुई अकबर की दृष्टि चढ़ी तो वह उसका अपहरण कर ले गया।
इस समय तक मोहन और भगवती युवा और विवाहित हो गए थे। वह हृष्ट-पुष्ट थे और अब अस्त्र-शस्त्र धारण कर सराय की रक्षा करते थे। तीसरा बच्चा कल्याण अकबर की सेना में भरती हो आगरे में रहता था। सराय में अब चार सेवक थे और सब तलवार लेकर सराय की रक्षा करते थे।
जब सुंदरी ने हल्ला किया तो सेवक और रामकृष्ण के लड़के तलवारें ले सराय से निकले, परंतु अकबर की आज्ञा से उसके साथी भाग खड़े हुए। सुंदरी अकबर के आगे घोड़े पर दबोचकर ऐसे पकड़ी हुई ले जाई जा रही थी जैसे किसी बाज के चंगुल में चिड़िया।
सुंदरी छटपटाती रही और अकबर सरपट घोड़ा दौड़ाता हुआ जा रहा था। करीमखाँ ने समीप चलते हुए कहा, ‘‘जहांपनाह! हुक्म हो तो इन काफिरों को दो-दो हाथ दिखा आऊँ। वे गाली दे रहे हैं।’’
‘‘बेवकूफ हैं। हमें फल खाने से मतलब है या बगिया उजाड़ने से?’’
सरायवाले पैदल होने के कारण पीछे रह गए और अकबर के साथियों ने नगर चैन पर पहुँचकर दम लिया।
सुंदरी शोर मचाती-मचाती हताश हो चुप कर चुकी थी।
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