उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
राधा ने उस यात्री स्त्री को खाट पर लिटाते हुए पूछा, ‘‘क्या नाम है और कहाँ से आई हैं?’’
उस स्त्री ने अपने आँचल से डिब्बा निकाल राधा को देते हुए कहा, ‘‘इसमें मेरा सब पता इत्यादि लिखा है। यदि जीवित रही तो कल सब बताऊँगी।’’
‘‘तो बच्चा पैदा करने पर औरत मर भी जाती है?’’ राधा ने विस्मय से पूछा।
वह स्त्री पलँग पर लेट गई और बोली, ‘‘यहाँ कोई दाई भी होगी?’’
‘‘यहाँ तो बस मैं ही हूँ।’’
‘‘तो बहन भटियारिन! मैं अब तुम्हारे हवाले हूँ।’’ उसे पुनः पीड़ा हुई।
मंगतू दूध लाया तो उस स्त्री ने दो घूँट गरम-गरम दूध पिया और बच्चे को जन्म दे दिया। राधा रात-भर उसके पास रही।
बच्चा लड़की थी। पैदा होते ही वह बहुत सुंदर प्रतीत हुई थी, इस कारण उसका नामकरण ‘सुंदरी’ कर दिया गया।
माँ को बच्चा होने के उपरांत ही ज्वर होने लगा। पहले यह समझा गया कि थकावट के कारण है, परंतु जब ज्वर उतरा नहीं तो गाँव के वैद्य को बुलाया गया। वह औषधि दे गया। परंतु ज्वर तो रोगी की मृत्यु के उपरांत ही उतरा।
मरने तक राधा उससे उसके घर और घरवालों का नाम-धाम पूछती रही, परंतु उस स्त्री ने नहीं बताया। बच्चा होने के सातवें दिन प्रसूता ने प्राण त्याग दिए और सुंदरी राधा की लड़की के रूप में पलने लगी।
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