उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
|
327 पाठक हैं |
बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘आपका परमात्मा पर विश्वास नहीं है, इसीलिए आप इन अल्पज्ञ मानवों से डरते हैं।’’
‘‘तुम्हें तो परमात्मा पर विश्वास है न?’’
‘‘जी है।’’
‘‘तो तुम्हें भय नहीं लग रहा?’’
‘‘किस बात का भय? आप चलिए। मुझे न तो भय है और न ही मैं आपके भय करने का कोई कारण समझती हूँ।’’
डॉक्टर सुदर्शन शेष बात अपनी बहन के सम्मुख करना नहीं चाहता था, इस कारण उसने सुमति के भय की व्याख्या नहीं की। उस दिन रात के समय पति-पत्नी में बात हो गयी। बात सुमति ने ही आरम्भ की। उसने पूछ लिया, ‘‘आप कब नलिनी बहन से मिलने चलेंगे?’’
‘‘क्यों, क्या बात है?’’
‘‘मैं शीघ्रातिशीघ्र उससे मिलकर उसके चित्त को सात्वना देना चाहती हूँ।’’
‘‘सान्त्वना की बात ठीक है, परन्तु तुम्हें स्मरण है कि उसने अपने पत्र में मेरे प्रति क्या भावना प्रकट की थी?’’
‘‘भला उसको विस्मरण कैसे कर सकती हूँ! परन्तु वह सब तो उसके और आपके विवाह से पूर्व था। क्या विवाह के उपरान्त परिस्थिति बदल नहीं गई?’’
|