उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘तुम अभी नलिनी के विषय में ठीक बात नहीं जानतीं। वह तुम्हारी तरह न हो परमात्मा पर विश्वास करती है, न आत्मा पर। जब आत्मा नहीं मानती तो पुनर्जन्म और कर्म-फल जैसी वस्तु को भला क्यों मानेगी और इस जीवन में जहाँ से भी और कुछ भी सुख प्राप्त होता दिखाई देगा, उस पर झपटने का यत्न करेगी।’’
सुमति मुस्कराते हुए बोली, ‘‘परन्तु उसके झपटने पर मुझे दुख क्यों होगा? यदि वह किसी उचित और प्राप्ति के योग्य वस्तु पर झपटकर सुख पा सके तो मुझे इसमें सुख ही होना चाहिए।’’
‘‘तुम समझती नहीं, सुमति! वह मुझ पर झपटने को उचित समझ सकती है और मुझे प्राप्त करने योग्य पदार्थ तो वह पहले से ही मानती है।’’
‘‘और आप अपने को क्या समझते हैं?’’ सुमति हँसते हुए बोली, ‘‘क्या आप कबूतर हैं जो बिल्ली से छुपकर बैठे हैं? अथवा क्या आप उसकी भाँति मूर्ख हैं जो किसी को बहन मान उसे पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेंगे?’’
‘‘फिर भी यदि आपके मन में नैसर्गिक दृढ़ता नहीं, और आप उससे बहन का व्यवहार दिखाने मात्र के लिए ही कर रहे हैं तो इस दिखावे को छोड़ आप अपना नैसर्गिक व्यवहार स्वीकार क्यों न करें?
‘‘मैं एक बात मानती हूँ कि मेरा आपसे विवाह हुआ है। किन्तु मैं आप पर जेल का दारोगा नियुक्त नहीं हुई। आप और मैं स्वेच्छा से इस रूप में रह रहे हैं। हम पर किसी प्रकार कोई प्रतिबन्ध नहीं है।’’
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