उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘इसके लिए किसी अवसर की प्रतीक्षा कीजिए। मेरे अन्तर में ज्योति जलने दीजिए तभी मैं यह सब कुछ करने का सामर्थ्य पाऊँगी।’’
‘‘मैं तुमको एक बात बताता हूँ।’’
‘‘हाँ, बताइए।’’
‘‘नलिनी दिल्ली आ गई है, वह बहुत दुखी है।’’
‘‘आपको यह सूचना किसने दी है?’’
‘‘प्रो० चन्द्रावरकर ने। उसने उसके दिल्ली आने की पूर्ण कथा भी बताई है। वह अपनी भाभी कात्यायिनी से दिन-रात लड़ रही है। उसका कहना है कि वह दुःख से पागल हो रही है।’’
‘‘उससे मिलकर स्थिति समझनी चाहिए।’’
‘‘मेरा भी यही विचार है। परन्तु मैं सोचता था कि कदाचित् तुम यह पसन्द न करो।’’
‘‘क्यों?’’
डॉ० सुदर्शन चुप रहा। सुमति को स्मरण था कि नलिनी के पत्र में कुछ लिखा था और इस कारण उसके पति को सन्देह था कि वह दोनों में पुनः सम्पर्क स्थापित होने पर किसी प्रकार की उच्छृंखलता करने लगेगी। सुमति ने अपने पति से कहा, ‘‘यदि आप किसी कार्य को अन्तरात्मा से ठीक समझते हों तो उसे करने से आप डरते क्यों हैं?’’
‘‘मैं संसार से डरता हूँ।’’
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