लोगों की राय

उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

327 पाठक हैं

बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


अपने पति, पति की माता तथा बहन द्वारा प्रशंसा व आदर होता देख वह समझने लगी थी कि यह उसका कर्तव्य है कि वह अपनी ननद के लिए वर-घर का प्रबन्ध करे। कात्यायिनी ने अपने सम्बन्धियों पर दृष्टिपात किया और कृष्णकांत खड़वे नलिनी के लिए उपयुक्त पति समझ में आया। उसने खड़वे को अन्तिम बार अपने विवाह के समय देखा था। था तो वह उसका मामा, परन्तु वह उनके घर में ही रहता और खेलता हुआ बड़ा हुआ था। अतः कात्यायिनी उसे अपने भाई समान ही मानती थी। खड़वे परिवार भी लगभग वैसा ही था, जैसे कात्यायिनी के माता-पिता थे, परन्तु कृष्णकांत ने जब मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की तो वह बेसरों-सामान नागपुर चला गया और वहाँ ट्यूशन करता हुआ कालेज की पढ़ाई करने लगा। इसने घर-भर में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ा दी। वह कात्यायिनी के विवाह के समय गाँव में आया था और कात्यायिनी के लिए नागपुर से एक तिलई साड़ी और ब्लाउज़ का कपड़ा लाया था। यह इस बात का लक्षण मान लिया कि वह नागपुर में सुख-सुविधा से रह रहा है। अतः जब कात्यायिनी नलिनी के लिए वर की खोज करने लगी तो कृष्णकांत उसकी दृष्टि में उपयुक्त सिद्ध हुआ। तब तक कृष्णकांत भी बी० ए०, बी० टी० पास कर एक स्कूल में अध्यापक बन चुका था। नलिनी भी यही परीक्षा पास किए हुए थी। इस कारण दोनों का संयोग बहुत ही उपयुक्त और सुख-सुविधाजनक प्रतीत हुआ।

कात्यायिनी ने अपने पति से बात की। उसने अपनी माँ से कहा तो माँ ने नलिनी को इस बात का संकेत कर दिया। यह उस समय की बात है जब प्रो० सुदर्शन के विवाह की बात नहीं चली थी।

माँ की बात सुन नलिनी ने पूछ लिया, ‘‘कौन है वह?’’

‘‘तुम्हारी भाभी का मामा है। नागपुर में एक सरकारी स्कूल में गणित का अध्यापक है। वहाँ पौने दो सौ रुपये वेतन पाता है।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book