उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
|
1 पाठकों को प्रिय 327 पाठक हैं |
बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘नहीं, गाली तो आपको दी ही नहीं जा सकती। मैंने समझा था–
इट कम्स टु कूल दी माइण्ड
एण्ड रिफ्रेश द वोर्न-आउट सेंसिज़
लाइक ए हैपी साउंड स्लीप।’’
‘‘बहुत सुन्दर! तुमने तो बिल्कुल ठीक वर्णन किया है सुमति का।’’
सुदर्शन बोल उठा।
‘‘मैं नलिनी बहन की आभारी हूं।’’ सुमति से कहा, ‘‘इनके इस आशीर्वाद के लिए मुझे इनको भेंट देनी चाहिए। क्यों जी! आप क्या कहते हैं?’’ इतना कह वह अपने पति का मुख देखने लगी। ‘‘तुमने निष्ठा और उषा को जो दिया है तो नलिनी क्यों उस भेंट से वंचित रह जाए?’’
सुमति उठी और नलिनी के समीप आकर बैठ गई। उसने अपने गले से सोने की चैन निकाली और नलिनी के गले में डाल दी, तत्पश्चात् उसको कसकर अपने अंग से लगा लिया।
बैरा चाय ले आया और तिपाई सामने रख उस पर लगाने लगा। सुमति चाय बनाने लगी। चाय पीते हुए नलिनी ने कहा, ‘‘निष्ठा बहन! हमारे आने से तुम्हारे सितार-वादन के अभ्यास का समय जा रहा है। यदि तुम उसे यहीं लाकर बजा लो तो एक पंथ दो काज हो जाएँगे।’’
|