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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘हाँ।’’

‘‘क्यों?’’

तभी सितार-वादन बन्द हो गया। सुदर्शन ने बताया, ‘‘मालूम पड़ता है सुमति ने निष्ठा को तुम्हारे आने की सूचना दे दी और वह यहीं आ रही है।’’

दोनों निष्ठा के आने की प्रतीक्षा करने लगे। वह आई तो नलिनी ने उठकर नमस्कार किया। निष्ठा ने उसे गले से लगा लिया। तदुपरान्त दोनों सोफे पर बैठ गईं। नलिनी ने कहा, ‘‘निष्ठा! याद है। तुमने क्या कहा था भाभी के विषय में?’’

निष्ठा और सुमति प्रश्न-भरी दृष्टि में नलिनी का मुख देखने लगीं। नलिनी ने हँसते हुए कहा–‘‘तुमने इनके विवाह के दिन कहा था कि भाभी बचपन और यौवन के बीच वसन्त ऋतु के तुल्य है। वसन्त ऋतु भी शरद् और ग्रीष्म के बीच आती है।’’

निष्ठा हँस पड़ी।

सुदर्शन ने पूछ लिया, ‘‘निष्ठा! यह भी कालिदास ने लिखा है क्या?’’

‘‘कालिदास ने तो बहुत कुछ लिखा है, परन्तु उस लिखे में से उपयुक्त बात निकालनी तो मेरी योग्यता है।’’

नलिनी ने कहा, ‘‘जब मैंने भाभी के गालों पर इत्र लगाया था तो मेरे मन में भी एक उपमा आई थी। क्यों भाभी! कह दूँ?’’

‘‘कह दीजिए! आप गाली भी देंगी तो मेरे लिए वह आशीर्वाद हो जाएगा।’’

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